12 जुलाई 2011
नई दिल्ली। देश में कॉमिक्स का जादू अब भी बरकरार है। शक्तिमान, नागराज और चाचा चौधरी जैसे कॉमिक्स किरदार अब भी लोगों को लुभा रहे हैं। इनकी लोकप्रियता को देखते हुए लगता है कि अगले दशक में कॉमिक्स उद्योग 300 से 400 करोड़ रुपये का हो जाएगा।
'विमानिक' कॉमिक्स के करन वीर अरोड़ा ने कहा, "कॉमिक्स किताबों का उद्योग एक स्थायी दर से वृद्धि कर रहा है। अभी यह 50 से 100 करोड़ रुपये का बाजार है और मुझे लगता है कि अगले 10 साल में यह 300 से 400 करोड़ रुपये का उद्योग होगा।" 'विमानिक' का चार करोड़ रुपये का कारोबार है।
भारत में एक साल में करीब 200 कॉमिक्स किताबें प्रकाशित होती हैं।
'ट्वेंटी ऑनवार्ड्स मीडिया' के संस्थापक जतिन वर्मा कहते हैं कि यह इस उद्योग के लिए उत्साहजनक समय है। उन्होंने कहा कि वार्षिक आयोजन 'कॉमिक कॉन इंडिया' से इस उद्योग के विकास में मदद मिलेगी और कॉमिक्स किताबों व ग्राफिक कला माध्यम को नई पीढ़ी के प्रशंसक मिल सकेंगे।
बीते 60 साल में कॉमिक्स उद्योग की प्रगति के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि 60 साल की बात करना बहुत पीछे जाना होगा वैसे इस उद्योग की जड़ें और भी पुरानी हैं, 40 साल पहले तक हास्य शीर्षक सामने नहीं आए थे। वैसे इस उद्योग में स्थिर गति से वृद्धि हुई है लेकिन 90 के दशक के अंत और 2000 की शुरुआत में इस वृद्धि की गति बहुत धीमी रही है।"
उन्होंने कहा, "फिर भी बीते पांच साल में इसमें फिर वृद्धि देखी गई, नई कॉमिक्स किताबें सामने आईं हैं। ग्राफिक किताबों की एक पूरी नई शैली सामने आई है।"
देश में कॉमिक्स किताबों की शुरुआत तब हुई जब कार्टूनिस्ट प्राण ने 60 के दशक में हास्य किरदार डाबू और प्रोफेसर अधिकारी की रचना कर इस क्षेत्र में विदेशी वर्चस्व को तोड़ना चाहा। इसके बाद श्रीमतीजी के नाम से एक किरदार आया। इस दिशा में प्रयोग होते रहे और 1973 में चाचा चौधरी-साबू की मशहूर जोड़ी सामने आई।
लगभग उसी समय 'इंडिया बुक हाउस' के अनंत पाई ने 1967 में अमर चित्र कथा की श्रृंखला शुरू की। उनका मकसद बच्चों के सामने ऐतिहासिक और पौराणिक किरदारों से जुड़ी कहानियां पेश करना था। इसके बाद कई अन्य कॉमिक्स किताबें भी आईं।
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